परिभाषा
G2V-प्रकार का तारा हर्ट्ज़स्प्रंग-रसेल आरेख के मुख्य अनुक्रम का हिस्सा है। इसे पीले बौने के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जिसकी सतही तापमान मध्यम होती है और यह सफेद से हल्की पीली रोशनी उत्सर्जित करता है।
संरचना
इसके केंद्र में प्रोटॉन-प्रोटॉन श्रृंखला के माध्यम से हाइड्रोजन का संलयन होकर हीलियम बनता है। केंद्र के चारों ओर विकिरण क्षेत्र होता है, जो फोटॉन प्रसार द्वारा ऊर्जा को स्थानांतरित करता है, इसके बाद संवहन क्षेत्र होता है जो ऊष्मा को सतह तक पहुँचाता है।
कार्यप्रणाली
तारे का विकिरण हाइड्रोस्टैटिक संतुलन द्वारा नियंत्रित होता है, जहाँ संलयन से उत्पन्न आंतरिक दाब गुरुत्वाकर्षण को संतुलित करता है। ऊर्जा उत्पादन अपेक्षाकृत स्थिर होता है, जिससे यह लंबे समय तक निरंतर प्रकाश और ऊष्मा का उत्सर्जन कर सकता है।
विकास
G2V-प्रकार का तारा अरबों वर्षों तक मुख्य अनुक्रम में बना रहता है। जब केंद्र का हाइड्रोजन समाप्त हो जाता है, तो यह उप-दैत्य अवस्था और फिर लाल दैत्य अवस्था में विकसित होता है, जिससे इसकी आंतरिक संरचना और विकिरण बदल जाते हैं।
सीमाएँ
इस प्रकार का तारा अनंतकाल तक संलयन बनाए नहीं रख सकता। इसकी विशेषताएँ प्रारंभिक द्रव्यमान पर निर्भर करती हैं: यदि यह बहुत छोटा होता, तो यह K या M प्रकार का होता; यदि बड़ा होता, तो यह F या A प्रकार का होता। इसका वर्तमान संतुलन तारकीय चक्र का एक संक्रमणकालीन चरण है।