परिभाषा
ज्वालामुखी उपग्रह वह प्राकृतिक उपग्रह है जिसके आंतरिक भाग में इतनी ऊर्जा बनी रहती है कि वह सक्रिय ज्वालामुखीयता को बनाए रख सके। यह गतिविधि आंतरिक ऊष्मा के कारण होती है, जो रेडियोधर्मिता, ज्वारीय बलों या विभेदन प्रक्रियाओं से उत्पन्न होती है।
संरचना
इसकी संरचना में एक केंद्रीय कोर होता है, जो प्रायः धात्विक या शैला-प्रधान होता है, और उसके चारों ओर आंशिक रूप से पिघला हुआ मैंटल होता है। सतह पर पतली पर्पटी होती है, जिसमें अनेक दरारें और ज्वालामुखीय द्वार बने होते हैं। मैग्मा कक्षों की उपस्थिति विस्फोटों को सहारा देती है।
ज्वालामुखीय गतिविधि
ज्वालामुखीयता लावा प्रवाह, गैस फव्वारे, गंधक या पिघली हुई बर्फ के निक्षेप के रूप में प्रकट होती है। विस्फोटों का पैमाना तेजी से भू-आकृति को बदल सकता है, जिससे समतल मैदान, गुम्बद या काल्डेरा बनते हैं।
विकास
समय के साथ, यह गतिविधि ऊष्मा उत्पादन और ऊर्जा ह्रास के संतुलन के अनुसार बढ़ सकती है या कम हो सकती है। मुख्य ग्रह के ज्वारीय बल लंबे समय तक ज्वालामुखीयता को बनाए रख सकते हैं। जब ये बल कम हो जाते हैं, तो उपग्रह ठंडा होने लगता है और गतिविधि घट जाती है।
सीमाएँ
ज्वालामुखी उपग्रह का अस्तित्व उसकी कक्षीय स्थिति, प्रारंभिक संरचना और ऊष्मीय इतिहास पर निर्भर करता है। सभी उपग्रह इस प्रकार की गतिविधि नहीं दिखाते, अधिकांश निष्क्रिय या भूवैज्ञानिक रूप से कठोर हो चुके होते हैं।