परिभाषा
S-प्रकार क्षुद्रग्रह, क्षुद्रग्रहों का एक वर्ग है जो सिलिकेट खनिजों और धातुओं की बहुतायत से पहचाना जाता है। इनके वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) में ओलिवीन, पाइरॉक्सीन और लोहा-निकल के स्पष्ट संकेत मिलते हैं, जो इन्हें कार्बनीय क्षुद्रग्रहों से अलग करते हैं।
संरचना
ये क्षुद्रग्रह मुख्य रूप से मैग्नीशियम और लोहे के सिलिकेट्स से बने हैं, जिनमें धात्विक मिश्रधातुएँ भी मिलती हैं। सौर वायु और टक्करों के प्रभाव से इनकी सतह का रूप बदल जाता है, जिससे अंतरिक्षीय अपक्षय (स्पेस वेदरिंग) होता है और उनकी परावर्तन क्षमता प्रभावित होती है।
आंतरिक संरचना
इनकी आंतरिक संरचना एक जैसी नहीं होती। विभेदन की मात्रा के आधार पर, इनमें सिलिकेट-युक्त मेंटल से लेकर आंशिक रूप से मौजूद या बिल्कुल न होने वाले धात्विक क्रोड तक पाए जाते हैं। कुछ S-प्रकार क्षुद्रग्रहों को, पहले से ही विभेदित मूल पिंडों के टुकड़े माना जाता है।
सतह
इनकी सतह C-प्रकार क्षुद्रग्रहों की तुलना में अधिक चमकीली और परावर्तक होती है। इन पर गड्ढे (क्रेटर), दरारें और कभी-कभी धूल-मलबे से बनी हुई मिट्टी (रेगोलिथ) की परत देखी जा सकती है। खनिजों और अपक्षय के आधार पर इनका रंग धूसर से लेकर लालिमा लिए हुए हो सकता है。
विकास
S-प्रकार क्षुद्रग्रह, प्राचीन पिंडों में पदार्थों के पिघलने और अलग होने (विभेदन) की प्रक्रियाओं के सबूत प्रस्तुत करते हैं। इनका अध्ययन पृथ्वी पर मिलने वाले पथरीले उल्कापिंडों की संरचना को मुख्य क्षुद्रग्रह बेल्ट में स्थित उनके मूल पिंडों से जोड़ने में मदद करता है।
सीमाएँ और विविधता
S-प्रकार का वर्गीकरण ऐसे विविध पिंडों को समूहित करता है जिनकी रासायनिक संरचना और ऊष्मीय इतिहास भिन्न-भिन्न है। कुछ में आदिम संरचनाएँ बची हैं, जबकि अन्य में आंशिक पिघलाव और विभेदन जैसी विकास की प्रक्रियाएँ देखी जाती हैं।