परिभाषा
मंगल एक पथरीला ग्रह है जिसके चारों ओर अत्यंत पतली वायुमंडलीय परत है। इसकी ठोस सतह, हिम-परतें और धूल मिलकर ऐसा तंत्र बनाती हैं जहाँ खनिज आधार, मौसमी पाला और वायुमंडलीय गति एक-दूसरे के साथ क्रिया करते हैं।
आंतरिक संरचना
अंदरूनी भाग आंशिक रूप से तरल धात्विक कोर, सिलेिकेट मेंटल (जिसमें श्यान-लोचशील गुण होते हैं) और अपेक्षाकृत मोटी पपड़ी से बना है। इन क्षेत्रों के बीच संक्रमण कठोरता, घनत्व और ऊष्मा चालकता में परिवर्तन के रूप में दिखाई देता है, जो धीमी विकृतियों और आंतरिक ढालों को नियंत्रित करता है।
सतह और भू-आकृति
सतह पर विशाल मैदान, दरारों वाले उच्च भूभाग, विस्तृत ज्वालामुखीय क्षेत्र और प्रभाव बेसिन पाए जाते हैं। सतही पदार्थों में परिवर्तित चट्टानें, बेसाल्टीय निक्षेप, सूक्ष्म-कण अवसाद और वायुमंडल द्वारा उठाई गई धूल की परतें शामिल हैं।
द्रव आवरण
बहुत ही स्वच्छ वायुमंडल मुख्यतः कार्बन-समृद्ध गैसों और निलंबित धूल से बना है। इसकी कम घनत्व ऊष्मा परिवहन, बादल निर्माण और सतह-निकट परिसंचरण को सीमित करती है। मौसमी चक्र ध्रुवीय क्षेत्रों के पास बर्फ के संघनन और उर्ध्वपातन को नियंत्रित करते हैं तथा सूक्ष्म धूल का पुनर्वितरण करते हैं।
विकास और परस्पर क्रियाएँ
शीतल होते आंतरिक भाग, सतही बर्फ और वायुमंडलीय प्रवाह के बीच परस्पर क्रियाएँ ग्रह के धीमे विकास को निर्धारित करती हैं। कक्षीय परिवर्तन हिम-निक्षेपों, धूल के प्रवास और भूमिगत बर्फ की स्थिरता को प्रभावित करते हैं। भू-आकृतिक साक्ष्य दर्शाते हैं कि अतीत में तरल प्रवाह मौजूद थे, जो अब केवल स्थानीय घटनाओं तक सीमित हैं।
सीमाएँ और पर्यावरणीय स्थितियाँ
निम्न दाब, अत्यधिक शुष्कता और बड़े तापीय अंतर सतह पर द्रव-प्रक्रियाओं को सीमित करते हैं। वैश्विक चुंबकीय क्षेत्र की अनुपस्थिति उर्जावान कणों से सुरक्षा को कम करती है, जिससे ऊपरी वायुमंडलीय परतें और उजागर पदार्थ धीरे-धीरे बदलते हैं।